JNU में बस इस छोटी सी बात पर हुआ बवाल, प्रशासन और छात्र आमने-सामने

नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला पुस्तकालय में लागू की गई नई प्रवेश प्रणाली को लेकर है। प्रशासन ने सुरक्षा और पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए फेस रिकग्निशन सिस्टम (Face Recognition System) शुरू किया, लेकिन छात्रों ने इसे निजता के उल्लंघन और मनमानी करार देते हुए विरोध शुरू कर दिया। देखते ही देखते यह विरोध प्रदर्शन उग्र हो गया और पुस्तकालय में तोड़फोड़ तक हो गई। हालात काबू में करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा।

विवाद की शुरुआत

दरअसल, JNU प्रशासन ने विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में एक नई व्यवस्था लागू की है। इसके तहत हर छात्र को प्रवेश के लिए फेस रिकग्निशन मशीन से गुजरना होगा। प्रशासन का दावा है कि यह कदम सुरक्षा कारणों और छात्रों की वास्तविक उपस्थिति दर्ज करने के लिए उठाया गया है। लेकिन छात्रों का कहना है कि यह उनकी आज़ादी और निजता के खिलाफ है।

छात्रों ने विरोध करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय पहले से ही पहचान पत्र (ID Card) की व्यवस्था चला रहा है, ऐसे में फेस रिकग्निशन लागू करना अनावश्यक और संदिग्ध है।

छात्रों का गुस्सा फूटा

सोमवार को जब कई छात्रों को पुस्तकालय में प्रवेश से रोका गया, तो विवाद ने जोर पकड़ लिया। छात्रों ने नारेबाजी की और प्रशासनिक आदेशों के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसी बीच स्थिति बिगड़ने पर कुछ छात्रों ने पुस्तकालय के भीतर तोड़फोड़ कर दी। इस दौरान कुर्सियां और कंप्यूटर सिस्टम क्षतिग्रस्त हुए।

छात्रों का आरोप है कि प्रशासन ने उनकी बात सुने बिना जबरन सिस्टम लागू कर दिया। वहीं, छात्र संघ (JNUSU) ने इसको लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर दिया है।

पुलिस की एंट्री

प्रदर्शन बढ़ता देख प्रशासन ने दिल्ली पुलिस को बुलाया। पुलिस बल ने मौके पर पहुंचकर हालात संभाले और पुस्तकालय परिसर को खाली कराया। हालांकि छात्रों ने पुलिस की मौजूदगी का भी विरोध किया और इसे कैंपस की स्वायत्तता पर हमला बताया।

JNUSU की मांग

जेएनयू छात्र संघ (JNUSU) ने कहा कि फेस रिकग्निशन सिस्टम पूरी तरह अस्वीकार्य है। यह छात्रों की निजता पर हमला है और कैंपस को जेल जैसा बना रहा है। JNUSU ने साफ कहा कि जब तक यह सिस्टम हटाया नहीं जाएगा, आंदोलन जारी रहेगा।

छात्र नेताओं ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि वे “कॉर्पोरेटाइजेशन और निगरानी संस्कृति” को बढ़ावा दे रहे हैं। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय एक शैक्षणिक संस्थान है, न कि कोई कॉर्पोरेट ऑफिस जहाँ हर कदम पर निगरानी की जाए।

प्रशासन का पक्ष

वहीं, विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों के आरोपों को खारिज किया है। प्रशासन का कहना है कि यह प्रणाली सुरक्षा और सुविधा दोनों के लिहाज से ज़रूरी है। हाल के दिनों में पुस्तकालय में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश और किताबों की चोरी की शिकायतें सामने आई थीं। इसके अलावा कई बार छात्रों की वास्तविक उपस्थिति दर्ज करना भी मुश्किल होता था।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा—
“फेस रिकग्निशन सिस्टम छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लगाया गया है। इससे यह भी पता चलेगा कि कौन छात्र कितनी बार पुस्तकालय का उपयोग कर रहा है। यह डेटा शैक्षणिक सुधारों में भी मददगार होगा।”

विवाद का असर

अब यह विवाद केवल पुस्तकालय तक सीमित नहीं रहा। पूरे कैंपस में इसका असर दिखने लगा है। छात्र संगठनों ने आंदोलन को और तेज करने का ऐलान किया है। वहीं, कई शिक्षक भी छात्रों के पक्ष में खड़े दिखे हैं। शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय में विश्वास और संवाद की जगह प्रशासनिक कठोरता हावी हो रही है, जो संस्थान के माहौल को खराब कर रही है।

छात्रों का तर्क

छात्रों ने सवाल उठाया है कि अगर फेस रिकग्निशन सिस्टम लागू करना ही है तो इसके लिए सहमति (Consent) ली जानी चाहिए थी। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि छात्रों के डेटा का दुरुपयोग हो सकता है।

एक छात्रा ने कहा—
“हम किताब पढ़ने आते हैं, हमें निगरानी का डर क्यों झेलना चाहिए? प्रशासन को पहले छात्रों से चर्चा करनी चाहिए थी।”

JNU और विवादों का पुराना रिश्ता

यह पहली बार नहीं है जब जेएनयू प्रशासन और छात्रों के बीच टकराव की स्थिति बनी हो। इससे पहले भी हॉस्टल फीस वृद्धि, इंटरनेट बैन और अन्य मुद्दों पर छात्रों और प्रशासन में टकराव हो चुका है। विश्वविद्यालय कई बार इसी तरह के आंदोलनों के चलते चर्चा में रहा है।

आगे क्या?

फिलहाल, प्रशासन और छात्रों के बीच बातचीत का दौर जारी है। लेकिन छात्र संघ ने साफ संकेत दिया है कि जब तक फेस रिकग्निशन सिस्टम वापस नहीं लिया जाएगा, वे पीछे नहीं हटेंगे।

अगर बातचीत सफल नहीं होती, तो आने वाले दिनों में यह विवाद और गहराने की आशंका है। इसके असर से विश्वविद्यालय का शैक्षणिक माहौल प्रभावित हो सकता है।

JNU का यह विवाद एक बार फिर बताता है कि जब भी किसी विश्वविद्यालय में बिना संवाद और सहमति के कोई नई व्यवस्था लागू होती है, तो उसका विरोध होना तय है। अब देखना होगा कि प्रशासन और छात्र किस तरह से इस टकराव को सुलझाते हैं—समझौते से या फिर टकराव से

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