
नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में? BJP की डिमांड और 5 बड़े फैक्टर से बिहार की सियासत में मचा घमासान
बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। इस बार चर्चा का केंद्र है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भविष्य। बीजेपी के एक विधायक द्वारा उन्हें उपराष्ट्रपति बनाए जाने की खुली मांग के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की अटकलों के बीच नीतीश कुमार के नाम की चर्चा ने कई नए राजनीतिक समीकरणों को जन्म दे दिया है।
पटना, बिहार की राजनीति में एक बार फिर सस्पेंस और अटकलों का दौर शुरू हो गया है। इस बार वजह है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम, जो उपराष्ट्रपति पद की संभावित दौड़ में शामिल किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक विधायक ने स्पष्ट रूप से यह मांग उठाई है कि नीतीश कुमार को देश का अगला उपराष्ट्रपति बनाया जाए।
दरअसल, मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को लेकर यह चर्चा चल रही है कि वे किसी अन्य संवैधानिक भूमिका में जा सकते हैं। ऐसे में देश को एक नए उपराष्ट्रपति की जरूरत होगी। इसी पृष्ठभूमि में भाजपा विधायक की टिप्पणी ने सियासी पारा चढ़ा दिया है।
BJP विधायक ने क्या कहा?
भाजपा विधायक ने नीतीश कुमार की राजनीतिक योग्यता और उनके लंबे प्रशासनिक अनुभव को आधार बनाते हुए कहा कि उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि नीतीश कुमार का व्यक्तित्व इस संवैधानिक पद की गरिमा के अनुकूल है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब जदयू और भाजपा के बीच संबंधों में तल्खी बनी हुई है।
क्या नीतीश तैयार होंगे?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार इस प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे? अभी तक नीतीश कुमार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन जदयू के कुछ अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि अगर केंद्र सरकार से औपचारिक प्रस्ताव आता है, तो नीतीश उस पर गंभीरता से विचार कर सकते हैं।
बिहार की सियासत पर असर:
अगर नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होते हैं या पद स्वीकार करते हैं, तो बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव तय माना जा रहा है।
एक ओर मुख्यमंत्री पद खाली हो जाएगा,
दूसरी ओर जदयू में नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगेंगे।
भाजपा को भी यह अवसर मिल सकता है कि वह बिहार की सत्ता में फिर से साझेदारी की नई रणनीति बनाए।
5 बड़े फैक्टर जो नीतीश के नाम को मजबूत बनाते हैं:
1. लंबा राजनीतिक अनुभव:
नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर चार दशकों से भी लंबा है। वे रेल मंत्री, कृषि मंत्री, मुख्यमंत्री जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं।
2. स्वच्छ छवि और संतुलित राजनीति:
नीतीश कुमार को एक सुलझे हुए और व्यावहारिक राजनेता के रूप में देखा जाता है। उनकी छवि ईमानदार नेता की रही है जो हर वर्ग में स्वीकार्य हैं।
3. सभी दलों से संवाद की क्षमता:
नीतीश कुमार की यह खासियत रही है कि उन्होंने NDA और महागठबंधन दोनों के साथ सरकार चलाई है। यह उन्हें विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों में लोकप्रिय बनाती है।
4. संवैधानिक पद की गरिमा को निभाने की क्षमता:
उपराष्ट्रपति का पद पूरी तरह से गैर-राजनीतिक और गरिमामय होता है। नीतीश कुमार के व्यक्तित्व में यह संतुलन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
5. 2024 और 2025 के समीकरण:
2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा के लिए यह रणनीति हो सकती है कि नीतीश को सम्मानजनक विदाई देकर बिहार में सत्ता की नई स्क्रिप्ट लिखी जाए।
विपक्ष का क्या कहना है?
इस मुद्दे पर विपक्ष ने भी प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर दिया है। राजद के कुछ नेताओं ने इसे भाजपा की “चाल” करार दिया है और कहा कि भाजपा नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने की रणनीति बना रही है। वहीं कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक अफवाह” बताकर फिलहाल इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।
जनता की राय क्या कहती है?
सामान्य जनता के बीच भी इस मुद्दे पर चर्चा गर्म है। सोशल मीडिया पर लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। कुछ लोग नीतीश को उपराष्ट्रपति बनने की शुभकामनाएं दे रहे हैं, तो कुछ लोग इसे “बिहार छोड़ने का बहाना” मान रहे हैं।
फिलहाल यह साफ नहीं है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए नीतीश कुमार का नाम कितना गंभीरता से लिया जा रहा है, लेकिन इतना तय है कि इस चर्चा ने बिहार की राजनीति को एक बार फिर उथल-पुथल की स्थिति में ला दिया है। भाजपा विधायक का बयान चाहे रणनीति हो या व्यक्तिगत राय, लेकिन इससे साफ है कि आने वाले दिनों में राजनीतिक हलचलों का सिलसिला तेज़ होने वाला है।