
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष: श्रीमद् भगवद् गीता से जीवन की 10 अमूल्य नीतियां, जो हर इंसान को बनाती हैं श्रेष्ठ।
आज देशभर में श्रद्धा और उत्साह के साथ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। मंदिरों में भक्ति संगीत, झूला सजावट, मटकी-फोड़ कार्यक्रम और झांकी के माध्यम से भक्त अपने आराध्य का जन्मोत्सव मना रहे हैं। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने का भी अवसर है। श्रीकृष्ण का जीवन और उनसे जुड़ा दर्शन हमें धर्म, नीति और कर्तव्य के पालन का संदेश देता है।
श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को जो उपदेश दिया, वही श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में अमर हो गया। गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है। इसमें ऐसे नीति-सिद्धांत हैं, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने महाभारत के समय थे। खासतौर पर इस जन्माष्टमी पर हम उन 10 नीतियों को समझें, जो हर इंसान के जीवन को दिशा दे सकती हैं।
1. स्वार्थ के लिए दूसरों को दुख देना व्यर्थ है
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि हमारे सुख का आधार किसी और का दुख है तो वह सुख टिकाऊ नहीं होता। गीता सिखाती है कि जीवन में हमें ऐसे कर्म नहीं करने चाहिए जो दूसरों को पीड़ा पहुँचाएँ। सच्चा सुख वही है, जो सामूहिक हित में हो।
2. कर्तव्य ही सर्वोच्च धर्म है
अर्जुन को मोह त्यागकर युद्धभूमि में उतरने का आदेश देकर श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया कि अपने धर्म और कर्तव्य से पीछे हटना पाप है। हर इंसान को अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन करना चाहिए, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।
3. फल की चिंता मत करो
गीता का सबसे प्रसिद्ध उपदेश है— “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” इसका मतलब है कि इंसान को केवल कर्म पर ध्यान देना चाहिए, फल की चिंता करने से न तो कर्म सही होता है और न ही जीवन में शांति आती है।
4. संतुलन ही श्रेष्ठता है
भगवान कृष्ण ने सिखाया कि संयम और संतुलन हर कार्य में आवश्यक है। चाहे भोजन हो, नींद हो, काम या आराम – अति से बचकर मध्यम मार्ग अपनाने वाला ही सच्चा योगी है।
5. क्रोध और लोभ से विनाश होता है
गीता में कहा गया है कि क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रष्ट होती है और स्मृति नष्ट होने से बुद्धि का विनाश होता है। इसी तरह लोभ इंसान को अंधा बना देता है। इसलिए इनसे दूरी बनाना जरूरी है।
6. आत्मा अमर है
गीता का मूल सिद्धांत है – आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा शाश्वत है। यह सीख जीवन और मृत्यु के भय को कम करती है और व्यक्ति को निडर बनाती है।
7. जो मिला है, वही पर्याप्त है
श्रीकृष्ण ने समझाया कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता। संतोष ही सबसे बड़ी संपत्ति है। जो भी हमें मिला है, उसे स्वीकार करना और उसी में सुखी रहना ही सच्ची कला है।
8. हर स्थिति में धैर्य और विश्वास बनाए रखें
जीवन में कठिनाइयाँ आना तय है, लेकिन संकट के समय धैर्य और ईश्वर पर विश्वास रखने वाला इंसान कभी हारता नहीं। कृष्ण ने अर्जुन को यही भरोसा दिया था कि सत्य और धर्म की जीत निश्चित है।
9. सेवा और त्याग से ही जीवन सार्थक है
कृष्ण का जीवन दर्शाता है कि दूसरों की सेवा करना ही सच्ची भक्ति है। निस्वार्थ भाव से किए गए कार्य ही व्यक्ति को महान बनाते हैं।
10. धर्म वही है, जो सबके लिए हितकारी हो
गीता यह बताती है कि धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि वह कार्य है जो दूसरों के हित में हो और समाज में संतुलन बनाए।
आज की जीवनशैली में गीता की प्रासंगिकता
आधुनिक समय में जब लोग तनाव, प्रतिस्पर्धा और स्वार्थ में उलझे हुए हैं, तब गीता की ये नीतियां राहत और दिशा देती हैं। कर्म पर ध्यान देना, फल की चिंता छोड़ना, संतुलन बनाना और दूसरों का भला करना – ये बातें हर परिस्थिति में इंसान को आंतरिक शांति और आत्मबल देती हैं।
जन्माष्टमी का संदेश
श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव केवल धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह याद दिलाता है कि जीवन को सार्थक कैसे बनाया जाए। माखन-चोरी करने वाले नटखट बालक से लेकर गीता उपदेश देने वाले योगेश्वर तक, कृष्ण का व्यक्तित्व हमें सिखाता है कि जीवन में आनंद और जिम्मेदारी दोनों जरूरी हैं।
, इस जन्माष्टमी पर यदि हम श्रीमद्भगवद्गीता की इन 10 नीतियों को जीवन में उतारें तो न केवल व्यक्तिगत जीवन बेहतर होगा बल्कि समाज भी अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और समृद्ध बन सकेगा।