
दिल्ली-NCR में बेघर कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश: विवाद और सुनवाई का नया अध्याय
1. पृष्ठभूमि और सुप्रीम कोर्ट आदेश
11 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने suo motu संज्ञान लेते हुए बेघर कुत्तों की संख्या और बढ़ते कुत्ते काटने तथा रेबीज संक्रमण की घटनाओं को देखते हुए दिल्ली-NCR में सभी आवारा कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से उठाकर शेल्टर होम में भेजने का निर्देश दिया ।
कोर्ट ने आठ सप्ताह के भीतर 5,000 शेल्टर होम तैयार करने और सभी कुत्तों को नसबंदी, टीकाकरण के बाद स्थायी रूप से रखे जाने को कहा ।
दो जजों—जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन—ने कहा कि मौतों और हमलों से बचाव के लिए “ऊनतीम कार्रवाई आवश्यक” है ।
आदेश पर अमल रोक देने के लिए चेतावनी भी जारी की गई, और अवरोध करने वालों को कानूनी कार्यवाही की धमकी दी गई ।
2. व्यापक विवाद और प्रतिक्रिया
इस आदेश ने गहरे विवाद को जन्म दिया, जिसमें विभिन्न पक्षों ने अपनी प्रतिक्रिया दी:
जानवर संरक्षण संगठनों व वकील: जस्टिस पारदीवाला की बेंच पर सवाल उठाए गए, जिसमें कहा गया कि शेल्टर होम की गारंटी नहीं दी गई है और ऐसे निर्णय सिर्फ आदर्श नहीं, बल्कि व्यवहारिक आधार पर भी होना चाहिए ।
कपिल सिब्बल (Project Kindness की ओर से): “अगर शेल्टर नहीं हैं, तो उठाने पर रोक डाल दी जाए” की मांग की; उन्होंने यह भी कहा कि एक साथ बड़ी संख्या में कुत्तों को रखने से उनमें लड़ाई, तनाव होगा ।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता: “हम किसी कुत्ते को मारने की बात नहीं कर रहे, बस उन्हें इंसानी आबादी से अलग रखना चाहते हैं।” उन्होंने उल्लेख किया कि “बच्चों की जान जा रही है” और नसबंदी से कुत्तों के काटने की घटनाओं में कमी नहीं आई ।
मेनका गांधी (BJP सांसद): पहले आदेश को “unworkable and rubbish” कहा, और जो शेल्टर बनाए जा रहे हैं, क्या वे पर्याप्त आकार और व्यवस्था में हैं? । उन्होंने यह भी कहा कि शेल्टर तैयार न होने पर आदेश को लागू कैसे किया जा सकता है।
3. CJI की मध्यस्थता—तीन जजों की विशेष पीठ
चीजों की गंभीरता देखते हुए, चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने 13 अगस्त को आदेश वापस लेकर मामले को एक नई तीन–जज बेंच के हवाले किया ।
इस विशेष पीठ में शामिल हैं:
जस्टिस विक्रम नाथ
जस्टिस संदीप मेहता
जस्टिस एन.वी. अंजारिया
इस पीठ ने 14 अगस्त 2025 को पुनः सुनवाई की, जिसमें विवादित आदेश और याचिकाओं दोनों को ध्यान में रखते हुए चर्चा हुई।
4. 14 अगस्त 2025 की सुनवाई –
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए आपत्तिजनक हिस्सों, और प्रशासनिक कार्यान्वयन पर रोक लगाने की दलीलों का गहन मूल्यांकन करेगी ।
जस्टिस विक्रम नाथ ने नगर निगम की निष्क्रियता की कड़ी निंदा की, और पूछा कि “अधिकारियों ने वे क्या कार्य नहीं किया जो करना चाहिए था?” ।
वकील सिब्बल ने पूछा कि कुत्तों को उठाने के बाद उन्हें कहाँ रखा जाएगा, और कहा कि बड़ी संख्या में उनके एक साथ रहने से स्वास्थ्य, हिंसक झगड़ों जैसी समस्याएं उत्पन्न होंगी ।
SG तुषार मेहता: नसबंदी से न रोक पाने की ओर इशारा करते हुए कहा कि “रेबीज नहीं थाम पा रही” और “एक वोकल मिनॉरिटी ने मेव खाकर पशु प्रेम दिखा दिया” ।
कोर्ट ने फिलहाल इसके विभिन्न आदेशों को सुरक्षित रखा, यह तय करने के लिए कि क्या किसी हिस्से को फिलहाल रोकना चाहिए या किसी हिस्से को बरकरार रखा जाए ।
लोक अदालत की सॉफ्ट अप्रोच का संकेत देते हुए, पीठ ने कहा: “समाधान निकालना जरूरी है, विवाद नहीं” ।
5. स्थिति का सार
सरकार / SG बच्चों की सुरक्षा और बढ़ते कुत्ते काटने की घटनाओं को रोकना—isliye कड़े कदम जरूरी; नसबंदी पर्याप्त नहीं
एनजीओ / पशु प्रेमी अभी शेल्टर होम उपलब्ध नहीं हैं; बड़े स्तर पर उन्हें रखने से हिंसा, बीमारियाँ फैलेंगी; ABC नियमों का पालन और सामुदायिक सहभागिता जरूरी
कोर्ट सुनवाई जारी, आदेश सुरक्षित, केवल विवाद नहीं—प्रभावी, व्यवहारिक, और सभी पक्षों को लेकर समाधान पर केंद्रित रहेगी
6. अगली प्रक्रिया क्या है?
अदालत का फाइनल आदेश कब आएगा अभी स्पष्ट नहीं, लेकिन फिलहाल अंतरिम रोक/रहत संभव है।
अदालत सभी पक्षों के हलफनामों, दस्तावेज़ों, और प्रशासन की तैयारी का आकलन करेगी, विशेषकर शेल्टर की फैलावट एवं व्यवस्थापन पर।
अगर अदालत आदेश में संशोधन करती है, तो संभव है कि
पहले स्थानीय अधिकारियों को व्यापक स्तर पर ABC कार्यक्रम लागू करने का निर्देश दिया जाए—क्योंकि मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि नसबंदी प्रणाली पर्याप्त नहीं ।
शेल्टर होम की संख्या, स्थल, क्षमता, मानक तय किए जाएँ।
सामुदायिक हिस्सेदारी वाले मॉडल को प्राथमिकता दी जाए—जैसे NGO को राजनीति/नियम अपनाने का अवसर दिए जाने का सुझाव ।
आदेश के अनुपालन में पारदर्शिता लाने के लिए मॉनिटरींग फोर्स काम करेगी, ताकि कोई अवरोध स्थिति उत्पन्न न हो।
यह मामला केवल कोर्ट के आदेश से आगे निकलकर मानव-जीव अंतर्संबंध और प्रशासन में जवाबदेही पर सवाल उठा रहा है।
सामाजिक दृष्टिकोण से यह दो धड़ों में विभाजित हो गया है – मानव सुरक्षा बनाम मानवीय जानवर संरक्षण।
वैज्ञानिक आधार पर ABC मॉडल की सीमा स्पष्ट, लेकिन शेल्टर बिजनेस मॉडल की लागत व व्यवहार्यता की जाँच भी जरूरी है।
अगर सुप्रीम कोर्ट प्रभावी समाधान निकालती है, तो शहरी भारत में आवारा कुत्तों की समस्या पर पूरे देश में नई कार्यनीति बन सकती है।