शीर्षक: ममता बनर्जी की हुंकार: “बंगाली विरोध बर्दाश्त नहीं”, बीजेपी पर जमकर बरसीं

शीर्षक: ममता बनर्जी की हुंकार: “बंगाली विरोध बर्दाश्त नहीं”, बीजेपी पर जमकर बरसीं

कोलकाता | 21 जुलाई को कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की परंपरागत “शहीद दिवस” रैली के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्ष, विशेषकर भारतीय जनता पार्टी (BJP), पर तीखा हमला बोला। इस रैली में लाखों की संख्या में कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ी और मंच से ममता बनर्जी का संदेश सीधा, सख्त और साफ था – “बंगाली भाषा और संस्कृति का विरोध बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “बंगाल जो कर सकता है, वो कोई नहीं कर सकता।” इस बयान ने जहां बंगाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत पर जोर दिया, वहीं इसे एक राजनीतिक संदेश भी माना जा रहा है, जो केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों और कथित ‘हिंदी थोपने’ की प्रवृत्ति के खिलाफ है।

बंगाल का स्वाभिमान और राजनीतिक संदेश

ममता बनर्जी ने अपने भाषण में कहा कि बंगाली भाषा, साहित्य और संस्कृति का गौरवशाली इतिहास है और किसी भी प्रकार का अपमान सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हम किसी से डरते नहीं हैं। हम लड़ने वाले लोग हैं। अगर कोई बंगाली को नीचा दिखाने की कोशिश करेगा, तो उसे करारा जवाब मिलेगा।”

उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी चर्चा तेज हो गई। कई लोगों ने इसे बंगाल के स्वाभिमान की रक्षा के तौर पर देखा तो कुछ ने इसे क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने वाला राजनीतिक स्टेटमेंट कहा।

भाजपा पर तीखा हमला

रैली में ममता बनर्जी ने भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि भाजपा की सरकारें लगातार क्षेत्रीय भाषाओं और पहचान को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा, “दिल्ली वाले हमें यह बताना बंद करें कि हमें क्या बोलना चाहिए, क्या खाना चाहिए और किस भाषा में बात करनी चाहिए।”

उन्होंने ‘एक राष्ट्र, एक भाषा’ की नीति को भारतीय संघीय ढांचे पर हमला बताते हुए कहा कि भारत विविधताओं का देश है और सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिए। ममता बनर्जी ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा बंगाल में सामाजिक और सांस्कृतिक विभाजन पैदा करने की साजिश कर रही है।

शहीद दिवस की पृष्ठभूमि

गौरतलब है कि हर साल 21 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस “शहीद दिवस” मनाती है। यह दिन 1993 में हुए उस घटनाक्रम की याद में मनाया जाता है जब तत्कालीन वामपंथी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे तृणमूल समर्थकों पर पुलिस ने गोली चला दी थी, जिसमें 13 लोगों की मौत हुई थी।

इस साल की रैली विशेष रूप से महत्वपूर्ण रही क्योंकि यह 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी का शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है। रैली में उत्तर बंगाल, झारग्राम, पुरुलिया, बांकुरा जैसे दूरदराज के इलाकों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

भाजपा नेताओं ने ममता बनर्जी के बयान पर पलटवार करते हुए इसे “विभाजनकारी” करार दिया। पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, “ममता बनर्जी एक राज्य की मुख्यमंत्री होकर भी सिर्फ एक भाषा और संस्कृति की बात करती हैं। क्या अन्य भाषाएं और समुदाय बंगाल का हिस्सा नहीं हैं?”

उन्होंने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी अपने राजनीतिक आधार को मजबूत करने के लिए भावनात्मक मुद्दों को भड़काने का काम कर रही हैं।

जनता की राय बंटी

ममता बनर्जी के बयान “बंगाल जो कर सकता है, वो कोई नहीं कर सकता” पर आम जनता की राय भी बंटी नजर आ रही है। सोशल मीडिया पर एक पोल में लोगों से पूछा गया कि वे इस बयान को कैसे देखते हैं:

1. गर्व की बात है – कई यूजर्स ने कहा कि बंगाल का इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और सांस्कृतिक विरासत वाकई गौरवशाली है और ममता बनर्जी का बयान आत्मविश्वास से भरा है।

2. सब राज्यों का योगदान है – कुछ ने कहा कि देश निर्माण में हर राज्य की अपनी भूमिका है और किसी एक राज्य को सबसे ऊपर बताना संघीय भावना के खिलाफ है।
3. ये ओवर कॉन्फिडेंस है – आलोचकों का मानना है कि ममता बनर्जी का यह बयान आत्ममुग्धता से प्रेरित है और इससे राज्य के बाहर गलत संदेश जा सकता है।

4. ये सिर्फ पॉलिटिकल लाइन है – कुछ ने इसे केवल एक चुनावी बयान बताते हुए कहा कि यह जनता की भावनाओं को राजनीतिक फायदा उठाने के लिए उकसाने की रणनीति है।

ममता बनर्जी का 21 जुलाई का भाषण एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि तृणमूल कांग्रेस आने वाले समय में ‘बंगाली अस्मिता’ को मुख्य मुद्दा बनाकर भाजपा से मुकाबला करने की रणनीति पर काम कर रही है। भाषाई और सांस्कृतिक पहचान का सवाल अब केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि राजनीतिक मोर्चा भी बनता जा रहा है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो ममता बनर्जी का यह आक्रामक रुख न केवल राज्य के भीतर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी एकजुटता के प्रयासों को नया आयाम दे सकता है। अब यह देखना होगा कि जनता इस बयान को कितना समर्थन देती है और भाजपा इसका जवाब किस रणनीति से देती है।

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