
आज़ाद भारत में आज भी अंग्रेजों का ‘गुलाम’ है ये रेलवे ट्रैक, हर साल रॉयल्टी के रूप में रेलवे भरता है करोड़ों रुपये।
देश को आज़ाद हुए 75 साल से भी ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन भारत के रेलवे ट्रैक का एक बड़ा हिस्सा आज भी विदेशी मालिकाना हक के अधीन है। हर साल करोड़ों रुपये की रॉयल्टी दी जाती है—वह भी ब्रिटेन की एक निजी कंपनी को।
आज़ाद भारत की पटरी पर दौड़ती ट्रेने लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिन पटरियों पर ये दौड़ती हैं, वे अब भी पूरी तरह से भारतीय नहीं हैं?
भारतीय रेलवे आज भी हर साल करोड़ों रुपये ब्रिटेन की एक कंपनी को रॉयल्टी के रूप में देता है। इसका कारण है ब्रिटिश राज के दौरान हुआ एक ऐसा समझौता, जिसकी शर्तें आज भी लागू मानी जाती हैं। इन समझौतों के तहत भारत में बिछाए गए कुछ रेलवे ट्रैक अब भी ‘लीज़’ व्यवस्था के तहत माने जाते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, ब्रिटिश शासनकाल में भारत में रेलवे का जो आधारभूत ढांचा खड़ा किया गया, उसका एक बड़ा हिस्सा निजी ब्रिटिश कंपनियों द्वारा वित्तपोषित था। बदले में इन कंपनियों को लंबी अवधि के लिए लीज़ अधिकार दिए गए — जिनमें से कुछ समझौतों की अवधि 99 साल से भी अधिक थी।
स्वतंत्रता के बाद भी भारत सरकार ने इन व्यवस्थाओं को पूरी तरह समाप्त नहीं किया। नतीजा यह है कि आज भी रेलवे मंत्रालय विदेशी कंपनियों को ‘रॉयल्टी’ और ‘मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट्स’ के नाम पर करोड़ों रुपये का भुगतान करता है।
जब हम ‘विकसित भारत’ और आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, तब यह सवाल और भी अहम हो जाता है
क्या हम अपनी ज़मीन और संसाधनों पर सच में स्वाधीन हैं?
क्या यह उपयुक्त समय नहीं है कि ब्रिटिश काल में किए गए इन दीर्घकालीन समझौतों की समीक्षा की जाए और ज़रूरत हो तो इन्हें समाप्त किया जाए?
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद की सरकारों ने कई रेलवे लाइनों का निर्माण निजी ब्रिटिश कंपनियों की सहायता से कराया था।