देश भर में भूकंप को लेकर चिंता एक बार फिर गहरा गई है। केंद्र सरकार और वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा जारी किए गए नवीनतम भूकंपीय खतरे के नक्शे (Seismic Hazard Map) में कई ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिन्हें जानकर आम लोगों से लेकर प्रशासन तक में हड़कंप मच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की करीब 75% आबादी अब भी भूकंप के मध्यम से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों, यानी डेंजर जोन में रहती है। इन इलाकों में कभी भी बड़े भूकंप का खतरा बना रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की भौगोलिक संरचना और बढ़ती जनसंख्या घनत्व की वजह से भविष्य में बड़े भूकंप से भारी तबाही देखी जा सकती है।

भारत में भूकंपीय खतरे को लेकर नई चेतावनी
नए नक्शे में बताया गया है कि भारत का उत्तरी, पूर्वोत्तर और पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र हमेशा से भूकंप के प्रति बेहद संवेदनशील माना जाता रहा है। लेकिन इस बार चौंकाने वाला तथ्य यह है कि समूचे उत्तर भारत, दिल्ली-NCR, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के बड़े हिस्से अधिक जोखिम वाले भूकंप क्षेत्र में आ गए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत की टेक्टोनिक प्लेटें लगातार सक्रिय हैं और इनके आपसी टकराव से कभी भी 7 से 8 रिक्टर स्केल तक का विनाशकारी भूकंप आ सकता है।
इतनी बड़ी आबादी जोखिम में क्यों?
रिपोर्ट के अनुसार आज भी देश के करोड़ों लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहाँ भूकंप के दौरान भवन ढहने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। इसका मुख्य कारण है—
बिना अनुमति या इंजीनियरिंग मानकों के खिलाफ बने मकान
पुराने और कमजोर भवन
तेजी से बढ़ता शहरीकरण
घनी आबादी और अव्यवस्थित शहर योजना
आपदा प्रबंधन की कमजोर तैयारी
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसी बड़े शहर में 6.5 से 7 तीव्रता का भूकंप आता है, तो वहां भारी जनहानि हो सकती है। NCR, पटना, गुवाहाटी, श्रीनगर, देहरादून और जयपुर ऐसे शहर हैं जिन्हें नए नक्शे में हाई रिस्क जोन बताया गया है।
दिल्ली-NCR को लेकर बढ़ी चिंता
नए नक्शे में दिल्ली-NCR की स्थिति एक बार फिर खराब बताई गई है। यहां घनी आबादी, 50–60% अनियमित निर्माण और कमजोर मिट्टी इसे जोखिम क्षेत्र बना देते हैं। कई विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि दिल्ली के आसपास सक्रिय माइक्रो फॉल्ट लाइनें हैं, जो कभी भी तेज भूकंप का कारण बन सकती हैं।
पिछले दो वर्षों में NCR में 20 से ज्यादा हल्के भूकंप आ चुके हैं, जो लगातार सक्रियता का संकेत होते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप कब आएगा यह अनुमान लगाना संभव नहीं, लेकिन जोखिम का स्तर जितना ऊँचा होगा, संभावित नुकसान उतना बड़ा हो सकता है।
हिमालय क्षेत्र में खतरा सबसे अधिक
नया नक्शा दर्शाता है कि हिमालयी क्षेत्र आज भी दुनिया के सबसे खतरनाक भूकंप क्षेत्रों में से एक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि नेपाल और उत्तराखंड के बीच वाली टेक्टोनिक बेल्ट पिछले कई वर्षों से ऊर्जा जमा कर रही है। यह क्षेत्र एक या अधिक बड़े भूकंप के लिए पूरी तरह संवेदनशील है।
साल 2015 में नेपाल में आए 7.8 तीव्रता के भूकंप ने इसकी एक झलक दिखा दी थी। वैज्ञानिक कहते हैं कि आने वाले वर्षों में भारत के पहाड़ी राज्यों पर इससे भी बड़ा खतरा मंडरा सकता है।
पूर्वोत्तर भारत में भी स्थिति गंभीर
असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य उच्चतम जोखिम वाले ज़ोन 5 में आते हैं। यहां कभी भी 8 तीव्रता का भूकंप आ सकता है। यह क्षेत्र “ब्रहमपुत्र सिस्मिक ज़ोन” के नाम से जाना जाता है, जिसे पूरी दुनिया सबसे खतरनाक क्षेत्रों में गिनती है।
भूकंप का अंदेशा कब? वैज्ञानिकों ने क्या कहा
वैज्ञानिक स्पष्ट करते हैं कि भूकंप अनुमानित नहीं होते, लेकिन जोखिम स्तर हमें यह बताता है कि किन क्षेत्रों में खतरा अधिक है और किसे तैयारी बढ़ानी चाहिए।
ग्रीन सिग्नल यह है कि सही निर्माण तकनीक और आपदा प्रबंधन से जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
आम लोगों को क्या करना चाहिए?
विशेषज्ञों ने नागरिकों के लिए कुछ मुख्य सुझाव दिए हैं—
घर खरीदते या बनाते समय भवन को भूकंपरोधी मानकों के अनुसार बनवाएँ
घरों में भारी अलमारियों को दीवार से फिक्स करें
गैस पाइपलाइन, बिजली वायरिंग को सुरक्षित रखें
जरूरी दस्तावेज एक स्थान पर रखें
परिवार के साथ ‘इमरजेंसी प्लान’ बनाएं
भूकंप के दौरान “ड्रॉप, कवर एंड होल्ड” तकनीक अपनाएं
सरकारें क्या कदम उठा रही हैं
केंद्र और राज्य सरकारें अब भूकंपरोधी शहरों की दिशा में काम कर रही हैं। कई राज्यों में जोखिम वाले भवनों की सूची तैयार की जा रही है। NDRF और SDRF को भी नए उपकरण और प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। शहरी विकास मंत्रालय ने भी स्मार्ट सिटीज़ में भूकंपरोधी निर्माण को अनिवार्य बनाने की प्रक्रिया तेज की है।
नए नक्शे का महत्व क्यों बढ़ गया?
नया सिस्मिक मैप इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यह पिछले कई दशकों के डेटा, जियोलॉजिकल स्ट्रक्चर और माइक्रोफॉल्ट एनालिसिस पर आधारित है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत का विशाल इलाका खतरे के दायरे में है और समय रहते तैयारियां बढ़ानी होंगी, ताकि भविष्य की त्रासदी को टाला जा सके।
