जान जोखिम में डालकर शिक्षा हासिल करने की जिद। टूटा हुआ पुल नहीं तोड़ पाया हौसला, बच्चों की जिजीविषा बनी मिसाल।

जान जोखिम में डालकर शिक्षा हासिल करने की जिद। टूटा हुआ पुल नहीं तोड़ पाया हौसला, बच्चों की जिजीविषा बनी मिसाल।

खूंटी। झारखंड के खूंटी जिले में बच्चों की शिक्षा पाने की ललक और हौसले ने हर किसी को चौंका दिया है। बीते 15 दिनों से सिमडेगा – कोलीबिरा मार्ग पर बना पेलोल पुल ध्वस्त पड़ा है। लगातार हो रही बारिश के चलते यह पुल पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया, जिससे इस इलाके की परिवहन व्यवस्था के साथ-साथ स्कूली शिक्षा पर भी गंभीर असर पड़ा है।

कैथरीन स्कूल के छात्र—जो सुनगी, रोड़ो, अंगराबारी और बिचना जैसे गांवों से आते हैं—हर रोज जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंच रहे हैं। पुल के टूटने से स्कूल बस की सेवा बंद हो चुकी है। अब अभिभावकों को अपने निजी साधनों से बच्चों को उस स्थान तक लाना पड़ता है, जहां पुल कभी था।

यहां से आगे का रास्ता और भी खतरनाक है—गांववालों ने एक 25 फीट ऊंची अस्थायी सीढ़ी तैयार की है, जिससे बच्चे नीचे उतरते हैं। फिसलन भरी और असंतुलित इस सीढ़ी पर हर कदम जोखिम भरा है, फिर भी बच्चों का स्कूल जाने का उत्साह कम नहीं हुआ है।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि जब तक पुल का निर्माण नहीं होता, तब तक वे इस अस्थायी व्यवस्था से ही बच्चों की पढ़ाई का सिलसिला जारी रखना चाहते हैं।

सवाल उठता है—क्या शिक्षा पाने के लिए जान जोखिम में डालना जरूरी है?

प्रशासन को चाहिए कि जल्द से जल्द पुल निर्माण की दिशा में ठोस कदम उठाए, ताकि इन मासूमों की मेहनत और जज्बा व्यर्थ न जाए।

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