
देवघर। दिगंबर जैन समाज द्वारा मनाए जा रहे दशलक्षण महापर्व के छठे दिन को उत्तम संयम धर्म के रूप में बड़े ही हर्षोल्लास और धार्मिक उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सुबह विशेष अभिषेक और शांतिधारा का आयोजन हुआ, जिसमें सुरेश जैन, सौरभ जैन, गौरव जैन एवं वैभव जैन ने विधिवत पूजन-अभिषेक कर धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत की। तत्पश्चात सामूहिक आरती, भगवान शीतलनाथ और पंचबालयति पूजन, स्वयंभू पाठ, दशलक्षण पूजन एवं उत्तम संयम धर्म की विशेष पूजा संपन्न हुई।
सुगंध दशमी और सांस्कृतिक कार्यक्रम से गूंजा मंदिर परिसर
दोपहर के बाद जैन मंदिर परिसर में भक्तों ने भक्ति रस में डूबकर धार्मिक कार्यक्रमों का आनंद लिया। शाम 4 बजे से सुगंध दशमी का धूप खेपायन आयोजित हुआ, जिसके बाद सामूहिक आरती और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुईं। फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में बच्चों और युवाओं ने भाग लेकर धर्म और संस्कृति के महत्व को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया।
संयम ही जीवन का वास्तविक सौंदर्य – पं. ज्ञानचंद्र जैन
कार्यक्रम के दौरान शास्त्र वाचन में पंडित ज्ञानचंद्र जैन ने उत्तम संयम धर्म के महत्व पर विस्तृत प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन में पांच इंद्रियां –
1. स्पर्शन (त्वचा)
2. रसना (जीभ)
3. घ्राण (नाक)
4. चक्षु (नेत्र)
5. कर्ण (कान)
इन पर नियंत्रण आवश्यक है।
उन्होंने समझाया कि जीवन के दो मार्ग हैं – एक योग का और दूसरा भोग का। प्रवृत्ति और निवृत्ति के बीच संतुलन स्थापित करने वाला ही संयम कहलाता है। संयम ही वह साधन है जो मनुष्य को जानवरों जैसी प्रवृत्ति से अलग कर परमात्मा के मार्ग की ओर अग्रसर करता है।
पंडित जैन ने कहा – “संयम रहित जीवन मुर्दे के श्रृंगार की भांति अप्रयोजनीय है। संयम आत्मा का सौंदर्य है और सदगति प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है। संयम का अर्थ है भोग और त्याग की अति से ऊपर उठकर मध्यम मार्ग को स्वीकार करना।”
कार्यक्रम में रही समाज की व्यापक उपस्थिति
इस अवसर पर झारखंड राज्य दिगंबर जैन धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष ताराचंद जैन मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। साथ ही स्थानीय जैन समाज के पदाधिकारी – अध्यक्ष राजेश जैन, उपाध्यक्ष सुरेश जैन, मंत्री सुरेश पाटनी, कोषाध्यक्ष जुगल जैन, पवन जैन काला, जौली जैन, नरेंद्र जैन इंजीनियर, अशोक जैन, डॉ. आनंद जैन, प्रमोद जैन, अजीत जैन, बसंत जैन, ताराचंद जैन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
महिलाओं की भी बड़ी भागीदारी रही। इनमें मंजू जैन, सीमा जैन, प्रमिला जैन, इंद्रा पाटनी, चित्रा जैन, शशि जैन, मीना पाटनी, मीना छावड़ा, कल्पना जैन, प्रीति जैन, सीमा जैन मेघदूत सहित जैन समाज की बहनों ने सक्रिय सहयोग किया
दशलक्षण महापर्व: आत्मा की शुद्धि का पर्व
दशलक्षण महापर्व को जैन धर्म में आत्मा की शुद्धि और आत्मानुशासन का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व के दस दिन दस धर्मों को समर्पित होते हैं –
1. उत्तम क्षमा
2. उत्तम मार्दव
3. उत्तम आर्जव
4. उत्तम शौच
5. उत्तम सत्य
6. उत्तम संयम
7. उत्तम तप
8. उत्तम त्याग
9. उत्तम आकिंचन्य
10. उत्तम ब्रह्मचर्य
इनमें छठे दिन का उत्तम संयम धर्म विशेष महत्व रखता है। यह मनुष्य को जीवन में संतुलन, अनुशासन और आत्मसंयम की प्रेरणा देता है।

संयम से ही मिलता है आत्मिक सुख
पूरे दिन चले धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के बीच भक्तों ने यही संदेश ग्रहण किया कि संयम ही वास्तविक आनंद है। संयम से जीवन में अनुशासन आता है और आत्मा परम आनंद की प्राप्ति करती है।
भक्तों ने आस्था और श्रद्धा के साथ कहा कि श्रेष्ठ इंसान वही बन पाता है, जो अपने जीवन को संयम से सजा देता है।
जैन समाज ने लिया संकल्प
दशलक्षण महापर्व के इस छठे दिन जैन समाज ने संकल्प लिया कि वे अपने जीवन में संयम, अनुशासन और मध्यम मार्ग का पालन करेंगे। सभी ने यह प्रण किया कि वे अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर जीवन को धर्ममय बनाएंगे और समाज में संयम, सत्य और त्याग का संदेश फैलाएंगे।

