हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना गया है। यह शुभ पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन तुलसी माता का विवाह भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु के स्वरूप) से कराया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह का आयोजन करने से कन्यादान के समान पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
तुलसी विवाह को देव-उठनी एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और सभी शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है। यही कारण है कि इस दिन विवाह जैसे मंगल कार्य की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।
तुलसी विवाह करने की विधि
तुलसी विवाह के लिए सबसे पहले तुलसी का पौधा सजाया जाता है। तुलसी माता को दुल्हन की तरह तैयार किया जाता है। उन्हें लाल चुनरी, बिंदी, गहने, चूड़ियां और सिन्दूर से सजाया जाता है। वहीं भगवान शालिग्राम को दूल्हे के रूप में तैयार किया जाता है और उन्हें पीले वस्त्र पहनाए जाते हैं। पूजा स्थल पर सुंदर मंडप बनाया जाता है, जहां तुलसी और शालिग्राम को एक साथ स्थापित किया जाता है।
फिर पंडित या परिवार का मुखिया विधि-विधान से पूजा आरंभ करता है। तुलसी माता और शालिग्राम जी को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, रोली, चंदन, मिठाई आदि अर्पित की जाती हैं। विवाह के समय मंत्रोच्चारण के साथ तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है।
तुलसी विवाह के लिए आवश्यक सामग्री (Tulsi Vivah Samagri List)
1. तुलसी का पौधा
2. भगवान शालिग्राम या विष्णु की प्रतिमा
3. लाल चुनरी और गहने
4. सिंदूर, बिंदी और चूड़ियां
5. पीले वस्त्र
6. नारियल
7. कलश और आम के पत्ते
8. रोली, चावल और हल्दी
9. धूप, दीप और कपूर
10. फूल और माला
11. मिठाई, फल और पंचामृत
12. पान, सुपारी, लौंग, इलायची
13. कलावा और मौली धागा
14. घी और शुद्ध जल
15. हवन सामग्री (यदि हवन किया जाए)
तुलसी विवाह का महत्व
मान्यता है कि तुलसी विवाह करवाने से जीवन में वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। अविवाहित लड़कियों के लिए यह व्रत अत्यंत शुभ फलदायक माना जाता है। इसके अलावा यह व्रत घर में शांति, समृद्धि और सुख का प्रतीक है। जो लोग स्वयं तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं, उनके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और घर में देवी-देवताओं का वास होता है।
इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और लोक कथाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जनसामान्य की जानकारी बढ़ाना है। किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले अपने पंडित या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।
