शालिग्राम भगवान कौन हैं
सनातन धर्म में शालिग्राम भगवान को श्रीहरि विष्णु का ही दिव्य और साकार स्वरूप माना गया है। यह कोई साधारण पत्थर नहीं बल्कि एक अत्यंत पवित्र और पूजनीय शिला है जो नेपाल के गंडकी नदी में पाई जाती है। माना जाता है कि जहां यह शिला मिलती है, वह स्थान स्वयं श्रीविष्णु का निवास स्थल है। शालिग्राम भगवान के दर्शन और पूजा का फल हजारों यज्ञों के बराबर बताया गया है। इसे घर में रखने से लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है और जीवन में सुख, शांति तथा समृद्धि आती है।
शालिग्राम की उत्पत्ति कैसे हुई
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शालिग्राम भगवान की उत्पत्ति तुलसी माता के शाप से हुई थी। एक समय देवी लक्ष्मी ने वृंदा नाम की एक पतिव्रता स्त्री का रूप धारण किया था। वृंदा जी की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उसे वरदान दिया कि वे सदैव उसके साथ रहेंगे। वृंदा जी की मृत्यु के बाद भगवान विष्णु ने अपने वचन को निभाने के लिए शालिग्राम के रूप में अवतार लिया। इसलिए शालिग्राम को विष्णु जी का ही स्वरूप माना जाता है।
तुलसी माता का महत्व
तुलसी माता को देवी लक्ष्मी का ही अवतार कहा गया है। तुलसी के पौधे को घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण पवित्र बना रहता है। तुलसी जी के बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पित किए बिना उन्हें प्रसन्न करना कठिन माना गया है।
शालिग्राम और तुलसी विवाह का धार्मिक कारण
हर साल देवउठनी एकादशी (प्रभोधन एकादशी) के दिन शालिग्राम भगवान और तुलसी माता का विवाह बड़े धूमधाम से किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और फिर सृष्टि संचालन का कार्य पुनः आरंभ करते हैं। तुलसी विवाह को शुभ और मंगलकारी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह करवाते हैं, उन्हें वही पुण्य मिलता है जो कन्यादान करने से मिलता है।
तुलसी विवाह की विधि
तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे को सजाया जाता है, उसके पास शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु के रूप में स्थापित किया जाता है। तुलसी माता को दुल्हन की तरह श्रृंगार करके पीले वस्त्र पहनाए जाते हैं। मंगल गीत गाए जाते हैं, और पंडित द्वारा वैदिक विधि से विवाह संपन्न किया जाता है। पूजा के बाद सभी को प्रसाद बांटा जाता है और इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व होता है।
शालिग्राम घर में रखने के नियम
शालिग्राम शिला को घर में स्थापित करने से पहले उसकी शुद्धि करना आवश्यक है। इसे हमेशा पूजा स्थान में रखें और प्रतिदिन जल, तुलसी पत्र और चंदन अर्पित करें। शालिग्राम की पूजा करते समय सच्ची निष्ठा और भक्ति भाव जरूरी है, क्योंकि यह स्वयं विष्णु जी का स्वरूप मानी जाती है।
धार्मिक महत्व
ऐसा विश्वास है कि शालिग्राम और तुलसी का विवाह करवाने से घर में समृद्धि, सौभाग्य और शांति आती है। जो भक्त इस दिन विवाह समारोह में शामिल होते हैं, उनके जीवन से सभी पाप मिट जाते हैं और उन्हें विष्णु-लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है।
यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पुराणों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जनसाधारण को जानकारी प्रदान करना है। इस विषय में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा विधि को करने से पहले योग्य पंडित या जानकार से सलाह अवश्य लें।
