देवघर। झारखंड के देवघर शहर में सामाजिक सौहार्द और प्रेम की एक अनोखी मिसाल देखने को मिली है। शहर के प्रख्यात बैडमिंटन कोच यश गुप्ता और दीप्ति सिंह ने अंतर्जातीय विवाह कर समाज में व्याप्त जातिगत बंधनों को चुनौती दे दी है। दोनों ने 04 दिसंबर को देवघर के प्रसिद्ध हरिलाजोड़ी मंदिर में विधिवत वैदिक रीति-रिवाज से विवाह कर अपना नया जीवन प्रारंभ किया। यह विवाह न केवल दो दिलों का मिलन है, बल्कि यह समाज के लिए एक बड़ा और साहसिक संदेश भी है कि प्रेम की शक्ति हर बंधन से ऊपर होती है।

प्रेम की शुरुआत, फिर साहसिक फैसला
जानकारी के अनुसार, यश गुप्ता और दीप्ति सिंह के बीच लंबे समय से प्रेम संबंध था। दोनों एक-दूसरे को समझते थे और जीवन भर साथ निभाने का वादा कर चुके थे। जब रिश्ते को आगे बढ़ाने की बात आई, तो जाति और समाज की रूढ़िवादी सोच उनके मार्ग में बाधा बन सकती थी। लेकिन दोनों ने एकजुट होकर निर्णय लिया कि वे किसी भी सामाजिक दबाव के आगे झुकने वाले नहीं हैं।
दोनों ने आपसी सहमति से अपने रिश्ते को विवाह का रूप दिया। यश गुप्ता, जो बरनवाल समुदाय से आते हैं, और दीप्ति सिंह, जो राजपूत परिवार से हैं—इनका यह निर्णय सामाजिक ताने-बाने में सकारात्मक परिवर्तन का संकेत है।
मंत्रोच्चार के बीच संपन्न हुआ पवित्र विवाह
04 दिसंबर को हरिलाजोड़ी मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार, पूजा-पाठ और पंडितों द्वारा किए गए विधि-विधान के बीच विवाह पूरा हुआ। विवाह स्थल पर दोनों परिवारों की मौजूदगी भले ही न रही हो, लेकिन यश और दीप्ति ने पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ अपना विवाह सम्पन्न किया।
मंदिर के पुरोहितों के अनुसार, विवाह की सभी विधाएं पूरी शांति और पारंपरिक पद्धति से हुईं। यश और दीप्ति ने समाज और कानून से जुड़ी सभी शर्तें भी पहले से पूरी कर ली थीं।
कानूनी प्रक्रिया का भी ध्यान रखा
विवाह के बाद मीडिया से बात करते हुए यश गुप्ता ने कहा कि–
“दीप्ति बालिग हैं और हमने अपनी मर्जी से शादी की है। किसी तरह की कानूनी गलतफहमी से बचने के लिए हमने इस विवाह की सूचना नगर थाना पुलिस को लिखित में दे दी है।”
इस कदम को पुलिस प्रशासन और अन्य स्थानीय संगठनों ने भी जिम्मेदार और उचित बताया है। यह कदम यह साबित करता है कि दोनों ने न केवल भावनात्मक स्तर पर, बल्कि कानूनी रूप से भी पूरी गंभीरता के साथ निर्णय लिया।
सामाजिक संदेश: प्रेम जाति-धर्म से ऊपर
यश गुप्ता जहां बरनवाल समुदाय से आते हैं, वहीं दीप्ति सिंह राजपूत समाज से ताल्लुक रखती हैं। झारखंड और बिहार में अब भी कई क्षेत्रों में जातिगत मान्यताएं गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। ऐसे में यह विवाह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर खास है, बल्कि समाज में प्रगतिशीलता और खुले विचारों का प्रतीक भी है।
क्षेत्र के सामाजिक संगठनों ने भी इस विवाह को एक सकारात्मक कदम बताया है। कई युवाओं और जागरूक लोगों ने सोशल मीडिया पर युगल को शुभकामनाएं दी हैं और इसे “सामाजिक परिवर्तन की दिशा में साहसिक प्रयास” बताया है।
नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणा
अंतर्जातीय विवाह को लेकर अक्सर समाज में विरोध या मतभेद देखने को मिलता है, लेकिन देवघर का यह विवाह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। इस तरह के निर्णय यह संदेश देते हैं कि रिश्तों की नींव जाति, धर्म या संकीर्ण सोच पर नहीं, बल्कि परस्पर सम्मान, प्रेम और विश्वास पर टिकी होनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के अंतर्जातीय विवाह समाज में एकजुटता, समानता और भाईचारे को बढ़ावा देते हैं। यह न केवल दो परिवारों को जोड़ता है बल्कि पूरे समाज को एक नई दिशा भी देता है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
देवघर के कई स्थानीय लोगों ने इस विवाह को साहसिक और सराहनीय कदम बताया है। उनका कहना है कि—
“जब तक समाज में ऐसे निर्णय नहीं लिए जाएंगे, तब तक जातिगत बंधन खत्म नहीं होंगे। प्रेम की जीत हमेशा प्रगतिशील समाज की नींव होती है।”
सोशल मीडिया पर भी यह विवाह चर्चा का विषय बना हुआ है। कई लोगों ने दोनों को बधाई दी और उनके साहस की प्रशंसा की है।
भविष्य के लिए शुभकामनाएं
यश गुप्ता और दीप्ति सिंह ने अपने प्रेम के बल पर समाज की रूढ़ियों को खत्म करने की दिशा में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम उठाया है। दोनों की यह पहल युवाओं में जागरूकता और सकारात्मक सोच को बढ़ावा दे सकती है। स्थानीय लोग और खेल जगत से जुड़े लोग भी यश को शुभकामनाएं दे रहे हैं क्योंकि वह खेल के माध्यम से कई बच्चों को प्रेरित कर चुके हैं।
इस विवाह ने यह संदेश फिर साबित कर दिया है कि—
“प्रेम किसी जाति, धर्म, समुदाय या परंपरा का मोहताज नहीं होता; प्रेम स्वयं एक पवित्र धर्म है।”
